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उत्तरप्रदेश, कानपुर नगर कानपुर का दिल कहे जाने वाला घंटाघर चौराहा इस बार भी भाईचारे की ऐसी मिसाल बना कि जिसने भी देखा, उसकी जुबान पर बस एक ही बात रही – यही है गंगा-जमुनी तहज़ीब का असली चेहरा।
करीब पचास साल पुरानी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग मिलकर गेट तैयार करते हैं, रोशनी करते हैं और घंटाघर से सुतरखाना तक मानो दुल्हन की तरह सजा देते हैं। यह दृश्य सिर्फ आंखों को सुकून नहीं देता, बल्कि दिलों में मोहब्बत और आपसी भाईचारे की लौ भी जगाता है।
इस बार सजावट की खासियत यह रही कि गेट को तुर्की की मशहूर अलहुदा मस्जिद के नक्शे पर तैयार किया गया। दूर से देखने पर ऐसा लगता है मानो कोई ऐतिहासिक धरोहर रोशनी में जगमगा रही हो। इस अनोखे गेट ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लिया और हर आने-जाने वाला इसके सामने ठहरकर तस्वीरें खिंचवाने लगा।हर बार की तरह इस बार भी इस्लामिया अहले सुन्नत कमेटी ने इस जिम्मेदारी को निभाया। आयोजन में कमेटी के संयोजक पिंकी यादव, असलम खान, मुन्ना सामानी, अध्यक्ष आफताब आलम, महामंत्री इश्तियाक अहमद, सचिव संदीप गुप्ता, उपाध्यक्ष मोहम्मद रफीक, मुजाहिद और मीडिया प्रभारी शावेज़ आलम ने मिलकर सजावट का काम संभाला। उनकी मेहनत और लगन से घंटाघर पर ऐसी रौनक फैली कि लोगों की भीड़ खिंची चली आई।स्थानीय नागरिकों का कहना है कि जब घंटाघर रोशनी से नहाता है तो पूरा इलाका मोहब्बत और भाईचारे के संदेश से जगमगा उठता है। एक बुज़ुर्ग ने मुस्कुराते हुए कहा— “ये रोशनी सिर्फ बिजली की नहीं, बल्कि दिलों को जोड़ने वाली है। यही कानपुर की असली पहचान है।”इस मौके पर यहां हजारों लोग पहुंच रहे हैं और गेट के सामने तस्वीरें खींचते हुए इस अनोखी सजावट को यादगार बना रहे हैं। कानपुर की यह पहल सिर्फ शहर ही नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश और देश के लिए संदेश देती है कि धर्म कोई भी हो, दिल जब साथ धड़कते हैं तो रोशनी और मोहब्बत हर जगह फैलती है।
सुरेश राठौर
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